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आवाज़

लिखती तो कविता ही हूँ , आज अपनी ग़ज़लनुमा कविता की बात करती हूँ।
आवाज़
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उन के दरों -दीवार की बातें करें
दिल से दिल मिलाने की बातें करें
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कल तलक रहे बिल्कुल बे- आवाज़
आज उन के दीदार की बातें करें
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ज़मी चुप है,आसमां बड़ा खामोश
सख्त होते हालात की बातें करें
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मातम का होता है बस इक बहाना
शब-ए -गम में क्या मौंत की बातें करें
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हर एक कोई होता नहीं है मेहरबान
बेरहम दुनियाँ की क्या बातें करें
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दुख से मिलकर दुख का बादल छँटता
माँ के आँचल के सकूँ की बातें करें
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भूख से ऊंचा रहेगा सदा ही ईमान
बेबसी, भूख की क्या बातें करें
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हम भी है कायल तेरे ए आसमान
अरु देश के बदहालात की क्या बातें करें
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कैसे -कैसे दिन हमने काटे है  अपने रिश्ते खुद हमने छांटे है पाँव में चुभते जाने कितने कांटे है आँखों में अब ख़ाली ख़ाली राते है इस दुनिया में कैसे कैसे नाते है तेरी- मेरी रह गई कितनी बातें है दिल में तूफान छुपाये बैठे है  बिन बोली सी जैसे बरसाते है

ग़ज़ल

लगी थी तोमहते उस पर जमाने में एक मुद्दत लगी उसे घर लौट के आने में हम मशगुल थे घर दिया ज़लाने में लग गई आग सारे जमाने में लगेगी सदिया रूठो को मानने में अजब सी बात है ये दिल के फसाने में उम्र गुजरी है एक एक पैसा कमाने में मिट्टी से खुद घर अपना बनाने में आराधना राय 

राहत

ना काबा ना काशी में सकूं मिला दिल को दिल से राहत थी जब विसाल -ए -सनम मिला। ज़िंदगी का कहर झेल कर मिला बीच बाज़ार में खुद को  नीलम कर गया यू  हर आदमी मिला राह में वो इस तरह कोई चाहतों से ना मिला रूह बेकरार रहे कोई "अरु" और वो अब्र ना कभी हमसे यू मिला आराधना राय copyright :  Rai Aradhana  ©