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यूँ ही

उम्मीदों के उज़ाले में वो हर दिन मिलता है
बड़ी देर तक वो यूँ ही तेरे चेहरे को तकता है
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बात करती है निगाहें  भी तुम्हारी
जब तेरी तस्वीर ख़ामोश होती  है

खुद को भूल जाऊँ  मुमकिन ये है
अब तुझ को भूलाना  मुश्किल है

तेरी वफाओं का सिला क्या दूँगी
ख़्वाब  टूटने का सिला क्या दूँगी

तुम ख़ुदा से चले आये ज़िंदगी में मेरी
तेरे सज़दे खड़ी  हुँ अब भला क्या दूँगी

हज़ारों चराग ये  जल उठे महफ़िल में तेरी
तेरी कही हर बात क़यामत ढाती रही यूँ ही






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ग़ज़ल

लगी थी तोमहते उस पर जमाने में एक मुद्दत लगी उसे घर लौट के आने में हम मशगुल थे घर दिया ज़लाने में लग गई आग सारे जमाने में लगेगी सदिया रूठो को मानने में अजब सी बात है ये दिल के फसाने में उम्र गुजरी है एक एक पैसा कमाने में मिट्टी से खुद घर अपना बनाने में आराधना राय 

राहत

ना काबा ना काशी में सकूं मिला दिल को दिल से राहत थी जब विसाल -ए -सनम मिला। ज़िंदगी का कहर झेल कर मिला बीच बाज़ार में खुद को  नीलम कर गया यू  हर आदमी मिला राह में वो इस तरह कोई चाहतों से ना मिला रूह बेकरार रहे कोई "अरु" और वो अब्र ना कभी हमसे यू मिला आराधना राय copyright :  Rai Aradhana  ©
कैसे -कैसे दिन हमने काटे है  अपने रिश्ते खुद हमने छांटे है पाँव में चुभते जाने कितने कांटे है आँखों में अब ख़ाली ख़ाली राते है इस दुनिया में कैसे कैसे नाते है तेरी- मेरी रह गई कितनी बातें है दिल में तूफान छुपाये बैठे है  बिन बोली सी जैसे बरसाते है