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ईद -

                   





         ईद

ईद से खूबसूरत कहाँ कोई बात होती है
ईद के चाँद में अक्सर कोई बात होती है

रुखसत हुई हो डोली में दुल्हन ही आज
इज़्ज़त से जो हो जाए वहीं बात होती है

बारात सज रही है अर्श पे लगता है आज
हिल - मिल कर ही दिल से बात होती है

रब के होने का अहसास जगाता है  चाँद
जब भी मिलती है रूहानी सी बात होती है

उसी देख कर तारे की अजब रात होती है
फलक पे चाँद की" अरु" नूरानी बात होती है

आराधना राय "अरु"


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ग़ज़ल

लगी थी तोमहते उस पर जमाने में एक मुद्दत लगी उसे घर लौट के आने में हम मशगुल थे घर दिया ज़लाने में लग गई आग सारे जमाने में लगेगी सदिया रूठो को मानने में अजब सी बात है ये दिल के फसाने में उम्र गुजरी है एक एक पैसा कमाने में मिट्टी से खुद घर अपना बनाने में आराधना राय 

राहत

ना काबा ना काशी में सकूं मिला दिल को दिल से राहत थी जब विसाल -ए -सनम मिला। ज़िंदगी का कहर झेल कर मिला बीच बाज़ार में खुद को  नीलम कर गया यू  हर आदमी मिला राह में वो इस तरह कोई चाहतों से ना मिला रूह बेकरार रहे कोई "अरु" और वो अब्र ना कभी हमसे यू मिला आराधना राय copyright :  Rai Aradhana  ©
कैसे -कैसे दिन हमने काटे है  अपने रिश्ते खुद हमने छांटे है पाँव में चुभते जाने कितने कांटे है आँखों में अब ख़ाली ख़ाली राते है इस दुनिया में कैसे कैसे नाते है तेरी- मेरी रह गई कितनी बातें है दिल में तूफान छुपाये बैठे है  बिन बोली सी जैसे बरसाते है