Skip to main content

रंज़

   


रंज़ मेरा था मेरा, मेरे ही साथ रहा
उम्र भर आह कि वो ही सौगात रहा

दफ़न हो गए होते हम यूँ यहीं कहीं
अब के ज़माना भी मेरे ही साथ रहा

वो कहे रात तो रात ही बस मेरी सही
गमों का सौदा था हमनें  हँस के सहा

जानें कौन बिज़लियाँ रोज़  गिराता रहा
 ज़मी पे "अरु"अजब सा कुफ़्र ढाता रहा
आराधना राय "अरु "
Rai Aradhana ©
----------------------------------------------------------------

कुफ़्र =attitude of ingratitude and thanklessness मतलबी ,ज़िस पर ईश्वर कि  कृपा ना हो 
                                   











                                      

Comments

Popular posts from this blog

कैसे -कैसे दिन हमने काटे है  अपने रिश्ते खुद हमने छांटे है पाँव में चुभते जाने कितने कांटे है आँखों में अब ख़ाली ख़ाली राते है इस दुनिया में कैसे कैसे नाते है तेरी- मेरी रह गई कितनी बातें है दिल में तूफान छुपाये बैठे है  बिन बोली सी जैसे बरसाते है

ग़ज़ल

लगी थी तोमहते उस पर जमाने में एक मुद्दत लगी उसे घर लौट के आने में हम मशगुल थे घर दिया ज़लाने में लग गई आग सारे जमाने में लगेगी सदिया रूठो को मानने में अजब सी बात है ये दिल के फसाने में उम्र गुजरी है एक एक पैसा कमाने में मिट्टी से खुद घर अपना बनाने में आराधना राय 

राहत

ना काबा ना काशी में सकूं मिला दिल को दिल से राहत थी जब विसाल -ए -सनम मिला। ज़िंदगी का कहर झेल कर मिला बीच बाज़ार में खुद को  नीलम कर गया यू  हर आदमी मिला राह में वो इस तरह कोई चाहतों से ना मिला रूह बेकरार रहे कोई "अरु" और वो अब्र ना कभी हमसे यू मिला आराधना राय copyright :  Rai Aradhana  ©