Skip to main content

कौन सी बात

        







साभार गूगल 
-----------------------------------------------------




          कौन सी बात
----------------------------------------------------
रोप बबूल को आम की बात की
कर्म-विधान की कौन सी बात की
-----------------------------------------------
जल रहा था देश, पेट की आग से
मंदिर जला, मस्जिद को तोड़ कर
जाने किस की ख़ुदा की तलाश की
हृदय पे मरहम लगा नहीं जो सकते
क्यों फिर बस देह- सुगंध की बात की
--------------------------------------------------------
जली सैकड़ों ही बस्तियाँ क्या बात थी
हम ने जाने किस सभ्यता की बात की
पशु की नहीं पशुता से नीची ये बात की
क्रांति पे "अरु" अशांत हो कर ही बात की 
------------------------------------------------
आराधन राय "अरु "
Rai Aradhana ©
स्वरचित

Comments

Popular posts from this blog

कैसे -कैसे दिन हमने काटे है  अपने रिश्ते खुद हमने छांटे है पाँव में चुभते जाने कितने कांटे है आँखों में अब ख़ाली ख़ाली राते है इस दुनिया में कैसे कैसे नाते है तेरी- मेरी रह गई कितनी बातें है दिल में तूफान छुपाये बैठे है  बिन बोली सी जैसे बरसाते है

ग़ज़ल

लगी थी तोमहते उस पर जमाने में एक मुद्दत लगी उसे घर लौट के आने में हम मशगुल थे घर दिया ज़लाने में लग गई आग सारे जमाने में लगेगी सदिया रूठो को मानने में अजब सी बात है ये दिल के फसाने में उम्र गुजरी है एक एक पैसा कमाने में मिट्टी से खुद घर अपना बनाने में आराधना राय 

राहत

ना काबा ना काशी में सकूं मिला दिल को दिल से राहत थी जब विसाल -ए -सनम मिला। ज़िंदगी का कहर झेल कर मिला बीच बाज़ार में खुद को  नीलम कर गया यू  हर आदमी मिला राह में वो इस तरह कोई चाहतों से ना मिला रूह बेकरार रहे कोई "अरु" और वो अब्र ना कभी हमसे यू मिला आराधना राय copyright :  Rai Aradhana  ©