Skip to main content

क्या बताए तुझे



क्या बताए तुझे 
-----------------------------------
मेरी ज़िन्दगी के  
हालात तंग थे 
इसलिए मेरे रिश्तों 
कि मौत हो गई। 
ज़िंदगी में नाकाम रहे 
रिश्ते भी हम पे कुछ 
बोझ ही रहे। 
मेरी चादर  ही तंग थी 
लेना -देना ना कभी 
सलीक़े से आया हमें 
मुझ से मेरे रिश्तों को 
परेशानी यही थी ,
दिल कि दौलत की 
मेरे पास यू तो कमी 
नहीं थी। 
दुनियाँ का कारोबार 
जिस से चलें वो 
दौलत नहीं थी। 
ख़्वाब है उन कि 
क़ीमत  ही क्या है 
मेरी नाकामियों में
वो भी अब बिकते
नहीं कहीं।
क्या बताए तुझे
ज़िंदगी रिश्तों के
साथ ही नहीं  चल पाए
हम कभी।
आराधना राय  "अरु"
Aradhana ©    



Comments

Popular posts from this blog

ग़ज़ल

लगी थी तोमहते उस पर जमाने में एक मुद्दत लगी उसे घर लौट के आने में हम मशगुल थे घर दिया ज़लाने में लग गई आग सारे जमाने में लगेगी सदिया रूठो को मानने में अजब सी बात है ये दिल के फसाने में उम्र गुजरी है एक एक पैसा कमाने में मिट्टी से खुद घर अपना बनाने में आराधना राय 

राहत

ना काबा ना काशी में सकूं मिला दिल को दिल से राहत थी जब विसाल -ए -सनम मिला। ज़िंदगी का कहर झेल कर मिला बीच बाज़ार में खुद को  नीलम कर गया यू  हर आदमी मिला राह में वो इस तरह कोई चाहतों से ना मिला रूह बेकरार रहे कोई "अरु" और वो अब्र ना कभी हमसे यू मिला आराधना राय copyright :  Rai Aradhana  ©
कैसे -कैसे दिन हमने काटे है  अपने रिश्ते खुद हमने छांटे है पाँव में चुभते जाने कितने कांटे है आँखों में अब ख़ाली ख़ाली राते है इस दुनिया में कैसे कैसे नाते है तेरी- मेरी रह गई कितनी बातें है दिल में तूफान छुपाये बैठे है  बिन बोली सी जैसे बरसाते है