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ज़ुबाँ




दर्द खुद एक ज़ुबाँ बन जाता  है
ख़लिश कि दास्ताँ कह जाता है

कोई तुम सा जो यू मिल गया है
कोई अब्र का टुकड़ा ही जुड़ गया है

मेरी पेशानी पे कुछ वो लिख गया है
ख्वाहिशों कि निशानी "अरु" दे गया है
आराधना राय "अरु"
 Rai Aradhana ©


(खलिश) Origin: Persian Khalish is an Urdu word, it means "prick, pain, anxiety, apprehension" 

हिंदी - दर्द , पीड़ा 

  पेशानी -   माथा , forehead.-

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कैसे -कैसे दिन हमने काटे है  अपने रिश्ते खुद हमने छांटे है पाँव में चुभते जाने कितने कांटे है आँखों में अब ख़ाली ख़ाली राते है इस दुनिया में कैसे कैसे नाते है तेरी- मेरी रह गई कितनी बातें है दिल में तूफान छुपाये बैठे है  बिन बोली सी जैसे बरसाते है

ग़ज़ल

लगी थी तोमहते उस पर जमाने में एक मुद्दत लगी उसे घर लौट के आने में हम मशगुल थे घर दिया ज़लाने में लग गई आग सारे जमाने में लगेगी सदिया रूठो को मानने में अजब सी बात है ये दिल के फसाने में उम्र गुजरी है एक एक पैसा कमाने में मिट्टी से खुद घर अपना बनाने में आराधना राय 

राहत

ना काबा ना काशी में सकूं मिला दिल को दिल से राहत थी जब विसाल -ए -सनम मिला। ज़िंदगी का कहर झेल कर मिला बीच बाज़ार में खुद को  नीलम कर गया यू  हर आदमी मिला राह में वो इस तरह कोई चाहतों से ना मिला रूह बेकरार रहे कोई "अरु" और वो अब्र ना कभी हमसे यू मिला आराधना राय copyright :  Rai Aradhana  ©