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अफ़साना




किसका इंतज़ार था तुझे  भी यू ए दोस्त
वह कहकशां भी अपने ही साथ ले के गया

दामन में सिर्फ़ आँसू थे उसकी ही याद के
बीते हुए पल कि वो हर ख़ुशी भी ले के गया

ना जाने किस बज़्म  में तुझे वो अब मिले
वो जाते हुए "अरु "अपनी दास्ताँ कह गया

आराधना राय "अरु"
 Rai Aradhana ©
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शब्द के अर्थ 

बज़्म  -महफ़िल ,Gathering 
कहकशां -"Highest place" प्यारा , ब्रम्हांड , 
 दास्ताँ - story , अफ़साना




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ग़ज़ल

लगी थी तोमहते उस पर जमाने में एक मुद्दत लगी उसे घर लौट के आने में हम मशगुल थे घर दिया ज़लाने में लग गई आग सारे जमाने में लगेगी सदिया रूठो को मानने में अजब सी बात है ये दिल के फसाने में उम्र गुजरी है एक एक पैसा कमाने में मिट्टी से खुद घर अपना बनाने में आराधना राय 

राहत

ना काबा ना काशी में सकूं मिला दिल को दिल से राहत थी जब विसाल -ए -सनम मिला। ज़िंदगी का कहर झेल कर मिला बीच बाज़ार में खुद को  नीलम कर गया यू  हर आदमी मिला राह में वो इस तरह कोई चाहतों से ना मिला रूह बेकरार रहे कोई "अरु" और वो अब्र ना कभी हमसे यू मिला आराधना राय copyright :  Rai Aradhana  ©
कैसे -कैसे दिन हमने काटे है  अपने रिश्ते खुद हमने छांटे है पाँव में चुभते जाने कितने कांटे है आँखों में अब ख़ाली ख़ाली राते है इस दुनिया में कैसे कैसे नाते है तेरी- मेरी रह गई कितनी बातें है दिल में तूफान छुपाये बैठे है  बिन बोली सी जैसे बरसाते है