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शहर की बात



शहर की बात
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अब किस शहर की बात हो 
जहाँ सुबह सी कोई रात हो

हर शख़्स ही जहाँ खास हो
अवाम की जहाँ पे बात हो

 ना भूख रोटी को  ढूँढती हो
 कफन ज़िंदगी ना ओढ़ी हो

यूँ इक सरज़मी की बात हो
उजालों पर यूँ ना सवाल हो

जहॉ रोशन हर ज़हन यूँ हो
हर बात पे ना कोई बवाल हो

कोई ख़्वाब हसीन नसीब हो
"अरु" मंज़िले कुछ करीब हो

आराधना राय "अरु"
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कफन -श्राउड, मृत्यु का सामान
सरज़मी- क्षेत्र, देश
अवाम- जनता , पब्लिक
शख़्स- आदमी ,,इंसान

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नज़्म

अब मेरे दिल को तेरे किस्से नहीं भाते  कहते है लौट कर गुज़रे जमाने नहीं आते  इक ठहरा हुआ समंदर है तेरी आँखों में  छलक कर उसमे से आबसर नहीं आते  दिल ने जाने कब का धडकना छोड़ दिया है  रात में तेरे हुस्न के अब सपने नहीं आते  कुछ नामो के बीच कट गई मेरी दुनियाँ  अपना हक़ भी अब हम लेने नहीं जाते  आराधना राय 

फासले हुए है

साभार गुगल मेरे नाम दिन के उजाले हुए है अंधेरों को हम क्यों पाले हुए है किन मज़बूरियों में ढाले हुए है हालत तंग दिल में छाले हुए है ख्वाब क्यों हमने पाले हुए है हसरतों कि ख्वाहिशें वाले हुए है बिना बात दिल में जाले हुए है किन महफिलों के हवालें हुए है लगी बात दिल पे मतवाले हुए है इंसानों में अजब "अरु" फासले हुए है आराधना राय "अरु"   ©

गीत---- नज़्म

आपकी बातों में जीने का सहारा है राब्ता बातों का हुआ अब दुबारा है अश्क ढले नगमों में किसे गवारा है चाँद तिरे मिलने से रूप को संवारा है आईना बता खुद से कौन सा इशारा है मस्त बहे झोकों में हसीन सा नजारा है अश्कबार आँखों में कौंध रहा शरारा है सिमटी हुई रातों में किसने अब पुकारा है आराधना राय "अरु"