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नारायणी



अटल विश्वास के लिए साथ  खड़ी हूँ मैं
अपने सत्य से भी यू कहीं परे हूँ क्या मैं
स्वाधीन, मुक्त हूँ प्रश्न का उत्तर हूँ मैं
धरती धरणी धीर सी अम्बर कथा हूँ मैं
वीरकण से बनी धीर प्रतिमूर्ति ही  हूँ मैं

मौन मूक वेदना कि ये एक कड़ी  हूँ  मैं
अटल हूँ सजगता  से खड़ी हुई तो  हूँ मैं
जन्मों तुझ से कहीं यू जुड़ी ही रही हूँ मैं
सृष्टि कि अनमोल रचना भी रही हूँ मैं
दुष्ट भंजनी  बाहुबल , नारायणी  हूँ मैं
जीवन दायनी प्रबला मुक्तेश्वरी   हूँ  मैं
अनेक रूपा "अरु" स्वरूपा भी तो  हूँ मैं
आराधना राय
copyright : Rai Aradhana ©


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ग़ज़ल

लगी थी तोमहते उस पर जमाने में एक मुद्दत लगी उसे घर लौट के आने में हम मशगुल थे घर दिया ज़लाने में लग गई आग सारे जमाने में लगेगी सदिया रूठो को मानने में अजब सी बात है ये दिल के फसाने में उम्र गुजरी है एक एक पैसा कमाने में मिट्टी से खुद घर अपना बनाने में आराधना राय 

राहत

ना काबा ना काशी में सकूं मिला दिल को दिल से राहत थी जब विसाल -ए -सनम मिला। ज़िंदगी का कहर झेल कर मिला बीच बाज़ार में खुद को  नीलम कर गया यू  हर आदमी मिला राह में वो इस तरह कोई चाहतों से ना मिला रूह बेकरार रहे कोई "अरु" और वो अब्र ना कभी हमसे यू मिला आराधना राय copyright :  Rai Aradhana  ©
कैसे -कैसे दिन हमने काटे है  अपने रिश्ते खुद हमने छांटे है पाँव में चुभते जाने कितने कांटे है आँखों में अब ख़ाली ख़ाली राते है इस दुनिया में कैसे कैसे नाते है तेरी- मेरी रह गई कितनी बातें है दिल में तूफान छुपाये बैठे है  बिन बोली सी जैसे बरसाते है