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कतरा




ज़िंदगी कतरा कतरा ही तय कि हमने
ख़ुशी से ज़्यादा ग़मो को ही जीया हमने

वक़्त का खुद इंतज़ार यू ही किया हमने
रुखसती पर अपना  मातम किया हमने

जीने के बहाने यू ही हज़ार क्यू दिए हमने
ज़िंदगी को नए अल्फ़ाज़ क्यू दिए हमने

चाँद कि चाँदनी को ना ख़फा किया हमने
"अरु"  अश्क़ से ख़ुद  निबाह किया हमने
आराधना राय


copyright : Rai Aradhana ©


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ग़ज़ल

लगी थी तोमहते उस पर जमाने में एक मुद्दत लगी उसे घर लौट के आने में हम मशगुल थे घर दिया ज़लाने में लग गई आग सारे जमाने में लगेगी सदिया रूठो को मानने में अजब सी बात है ये दिल के फसाने में उम्र गुजरी है एक एक पैसा कमाने में मिट्टी से खुद घर अपना बनाने में आराधना राय 

राहत

ना काबा ना काशी में सकूं मिला दिल को दिल से राहत थी जब विसाल -ए -सनम मिला। ज़िंदगी का कहर झेल कर मिला बीच बाज़ार में खुद को  नीलम कर गया यू  हर आदमी मिला राह में वो इस तरह कोई चाहतों से ना मिला रूह बेकरार रहे कोई "अरु" और वो अब्र ना कभी हमसे यू मिला आराधना राय copyright :  Rai Aradhana  ©
कैसे -कैसे दिन हमने काटे है  अपने रिश्ते खुद हमने छांटे है पाँव में चुभते जाने कितने कांटे है आँखों में अब ख़ाली ख़ाली राते है इस दुनिया में कैसे कैसे नाते है तेरी- मेरी रह गई कितनी बातें है दिल में तूफान छुपाये बैठे है  बिन बोली सी जैसे बरसाते है