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वज़ह


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ज़िंदगी यू ही खुद तू  बर्बाद  है
आदतन जुल्म का शिकार  है

बात तुझ से यू ही किये जाते है
बे वज़ह हम भी जीए ही जाते है

कोई तुम सा  यहाँ नही  होता है
वक़्त जब मेहरबान यू ही होता है

काम कुछ भी नहीं तेरे यू  आता है
आदमी जब नाकाम हुआ जाता है

कोई अजब सी बात रूह पे तारि है
ए "अरु" सफर तेरा भी ये ज़ारी है 
आराधना राय
copyright : Rai Aradhana ©

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ग़ज़ल

लगी थी तोमहते उस पर जमाने में एक मुद्दत लगी उसे घर लौट के आने में हम मशगुल थे घर दिया ज़लाने में लग गई आग सारे जमाने में लगेगी सदिया रूठो को मानने में अजब सी बात है ये दिल के फसाने में उम्र गुजरी है एक एक पैसा कमाने में मिट्टी से खुद घर अपना बनाने में आराधना राय 

राहत

ना काबा ना काशी में सकूं मिला दिल को दिल से राहत थी जब विसाल -ए -सनम मिला। ज़िंदगी का कहर झेल कर मिला बीच बाज़ार में खुद को  नीलम कर गया यू  हर आदमी मिला राह में वो इस तरह कोई चाहतों से ना मिला रूह बेकरार रहे कोई "अरु" और वो अब्र ना कभी हमसे यू मिला आराधना राय copyright :  Rai Aradhana  ©