ज़िंदगी यू ही खुद तू बर्बाद है
आदतन जुल्म का शिकार है
बात तुझ से यू ही किये जाते है
बे वज़ह हम भी जीए ही जाते है
कोई तुम सा यहाँ नही होता है
वक़्त जब मेहरबान यू ही होता है
काम कुछ भी नहीं तेरे यू आता है
आदमी जब नाकाम हुआ जाता है
कोई अजब सी बात रूह पे तारि है
ए "अरु" सफर तेरा भी ये ज़ारी है
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