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पास तेरे हूँ

                                               


                 पास तेरे हूँ
 
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मेरी आँखों में हो तुम  दिये की लौ की  तरह
तेरे आँगन में लौटी हूँ मैं भी तुलसी कि तरह

मुझे माथे पे ना लगाना तुम चंदन कि तरह
तेरे पास नहीं हूँ में किसी भी बंधन कि तरह

मेरी आखों  में सजोगे  तुम अंजन कि तरह
मेरे हाथों में सजोगे तुम भी कंगन कि तरह

हीरा ना समझना जली हूँ  कोयले कि तरह
मेरे पारस तुम ही सम्हालों यू ही कंचन तरह

लौ बन के जलूँगी तुम्हारी ही संगनी कि तरह
वो चलती रही "अरु" मन से भी मीरा कि तरह

आराधना राय


copyright : Rai Aradhana ©

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ग़ज़ल

लगी थी तोमहते उस पर जमाने में एक मुद्दत लगी उसे घर लौट के आने में हम मशगुल थे घर दिया ज़लाने में लग गई आग सारे जमाने में लगेगी सदिया रूठो को मानने में अजब सी बात है ये दिल के फसाने में उम्र गुजरी है एक एक पैसा कमाने में मिट्टी से खुद घर अपना बनाने में आराधना राय 

राहत

ना काबा ना काशी में सकूं मिला दिल को दिल से राहत थी जब विसाल -ए -सनम मिला। ज़िंदगी का कहर झेल कर मिला बीच बाज़ार में खुद को  नीलम कर गया यू  हर आदमी मिला राह में वो इस तरह कोई चाहतों से ना मिला रूह बेकरार रहे कोई "अरु" और वो अब्र ना कभी हमसे यू मिला आराधना राय copyright :  Rai Aradhana  ©
कैसे -कैसे दिन हमने काटे है  अपने रिश्ते खुद हमने छांटे है पाँव में चुभते जाने कितने कांटे है आँखों में अब ख़ाली ख़ाली राते है इस दुनिया में कैसे कैसे नाते है तेरी- मेरी रह गई कितनी बातें है दिल में तूफान छुपाये बैठे है  बिन बोली सी जैसे बरसाते है