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दे दिए




ज़िंदगी के दीये यू ही जला दिए 
राह आसान ना थी रास्तों में घर बना दिए। 

तेरी बात को गले यू ही लगा लिए
कौन था जिसने हर बार गहरे ज़ख़्म लगा दिए 

करूँ क्या उन से में यू ही तौबा
जिन्होंने दूसरों के घर यू ही सरेआम जला दिए 

 जाने  तुम क्यों ना सम्हल पाए 
अपनी तमन्नाओं के लिए  दूसरों के दामन जला दिए  

ज़माने ने  सौ दाग़ मुझे ही दिए
कई चराग़ जलने से पहले ही  खुद खुदा बन बुझा दिए  

हालत पर बात यू ही बना दिए
वक़्त ने मेरी आँख में "अरु"  आँसू यू ही क्यों दे दिए 

आराधना राय 
  







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कैसे -कैसे दिन हमने काटे है  अपने रिश्ते खुद हमने छांटे है पाँव में चुभते जाने कितने कांटे है आँखों में अब ख़ाली ख़ाली राते है इस दुनिया में कैसे कैसे नाते है तेरी- मेरी रह गई कितनी बातें है दिल में तूफान छुपाये बैठे है  बिन बोली सी जैसे बरसाते है

ग़ज़ल

लगी थी तोमहते उस पर जमाने में एक मुद्दत लगी उसे घर लौट के आने में हम मशगुल थे घर दिया ज़लाने में लग गई आग सारे जमाने में लगेगी सदिया रूठो को मानने में अजब सी बात है ये दिल के फसाने में उम्र गुजरी है एक एक पैसा कमाने में मिट्टी से खुद घर अपना बनाने में आराधना राय 

राहत

ना काबा ना काशी में सकूं मिला दिल को दिल से राहत थी जब विसाल -ए -सनम मिला। ज़िंदगी का कहर झेल कर मिला बीच बाज़ार में खुद को  नीलम कर गया यू  हर आदमी मिला राह में वो इस तरह कोई चाहतों से ना मिला रूह बेकरार रहे कोई "अरु" और वो अब्र ना कभी हमसे यू मिला आराधना राय copyright :  Rai Aradhana  ©