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बात थी





                            बात  थी 

कुछ अजीब रात थी ,शायद वो पहली मुलाक़ात थी
भीड़ में अकेले थे लेकिन  उसकी अलग पहचान थी 

उदास चेहरा पे आँखों में चमक आज भी मुझे याद थी 
वो सोचता ज़्यादा था,यही उसकी यही ये खास बात थी 

दुनियाँ के तौर तरीकों से नहीं  कोई उसकी पहचान थी 
उसकी पेशानियों पे लिखी यू तो हर रोज़ कि ही बात थी 

अपने दुख  दर्द से उसकी एक ज़माने से कोई पहचान थी 
 उसकी ख़ामोश निगाहों में   "अरु " अज़ीब सी  बात  थी 
आराधना राय  


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