पात पात पर इठलाती प्रहरी
भोर हो कोई सुनहरी
तुम भोर हो पहली किरण कि
और मैं ढलती साँझ सीकर रही नव किसलय स्वादन
प्रथम रंगिणी विभोर सी
मैं सूर्ये नहीं ना हूँ रत्नाकर
हूँ सूर्ये कि पीड सी
तिमिर को सह कर ह्रदय में
चंद्र कि विभा सी
मिटा कर आलोक में स्वयं को
बनी नव गीत सी
तुम जीवन के प्रयाण का प्राण
मैं अंत हूँ सुरभि सी
छेड़ती है राग-प्रेम बन "अरु" का
मानों ह्रदय कि टीस सी
आराधना राय
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