वक़्त
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जाते हुए वक़्त को मैं थाम नहीं सकती
क्यू मुझे वो गुज़रा वक़्त याद आता है
देख आये है इस दुनियाँ भर के मेले को
मेरा बचपन अभी तक ही मुझे रुलाता है
किसकी उगली थी थाम कर चली कभी
तेरा साया था वो आज भी याद आता है
थोड़ा सकून ज़िन्दगी तुझे मिलता नहीं
दिन का शोर ही रातों में भी क्यू डराता है
मन ये पंछी कि तरह ही क्यू उड़ा जाता है
जाने किस कि खोज ये कहा को जाता है
कितना पागल है कुछ समझ नहीं आता है
कौन किस के लिए यू लौट के आ जाता है
कह कर नहीं आता बेवक़्त ही आ जाता है
ये बुरा वक़्त "अरु" बता कर कहा आता है
आराधना राय
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