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वक़्त

वक़्त
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जाते हुए वक़्त को मैं थाम नहीं सकती 
क्यू  मुझे वो गुज़रा वक़्त याद आता है

देख आये है इस  दुनियाँ भर के मेले को
मेरा बचपन अभी तक ही मुझे रुलाता है

किसकी उगली थी थाम कर चली कभी 
तेरा साया था वो आज भी याद आता है


थोड़ा सकून ज़िन्दगी तुझे  मिलता नहीं   
दिन का शोर ही रातों में भी क्यू डराता है 

मन ये पंछी कि तरह ही क्यू उड़ा जाता है
जाने किस कि खोज  ये कहा को जाता है

कितना पागल है कुछ समझ नहीं आता है 
कौन किस के लिए यू लौट के आ  जाता  है 

कह कर नहीं आता बेवक़्त ही आ जाता है 
ये बुरा वक़्त "अरु" बता कर कहा आता  है 
आराधना राय   



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आज़ाद नज़्म पेड़ कब मेरा साया बन सके धुप के धर मुझे  विरासत  में मिले आफताब पाने की चाहत में नजाने  कितने ज़ख्म मिले एक तू गर नहीं  होता फर्क किस्मत में भला क्या होता मेरे हिस्से में आँसू थे लिखे तेरे हिस्से में मेहताब मिले एक लिबास डाल के बरसो चले एक दर्द ओढ़ ना जाने कैसे जिए ना दिल होता तो दर्द भी ना होता एक कज़ा लेके हम चलते चले ----- आराधना  राय कज़ा ---- सज़ा -- आफताब -- सूरज ---मेहताब --- चाँद

गीत---- नज़्म

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