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क्या देती


साभार गुगल



मैं तुझे इस दिल के सिवा क्या देती
अधूरी बची ज़िन्दगी उधार क्या देती

तुम एक हसीन सहर की बात करते हो
मैं तुम्हें उदासियों कि शाम क्या देती

मेरे मुक्क़दर में रोशनी ही  कुछ कम थी
मैं तुझे अंधेरों के सिवा यू भी क्या देती

तुम वफ़ा के मायने समझा गए मुझको
मैं उलझे हुए ज़ज़्बात के सिवा क्या देती
आराधना राय












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ग़ज़ल

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राहत

ना काबा ना काशी में सकूं मिला दिल को दिल से राहत थी जब विसाल -ए -सनम मिला। ज़िंदगी का कहर झेल कर मिला बीच बाज़ार में खुद को  नीलम कर गया यू  हर आदमी मिला राह में वो इस तरह कोई चाहतों से ना मिला रूह बेकरार रहे कोई "अरु" और वो अब्र ना कभी हमसे यू मिला आराधना राय copyright :  Rai Aradhana  ©