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अपना हो गया

किस कि क्या यू भी  खता थी
सज़ा कौन सी ये वो  सह गया।
बात कुछ भी ना उनसे यू  हुई थी
हंगामा सा हर तरफ क्यों हो गया।

तेरे शहर में हो कर हम  गुमनाम थे
तुझ से यू भी हम कभी  अनजान थे
बिन कहे ये भी क्या फ़साना हो गया
तेरी अदा पे हर कोई  दीवाना हो गया

कहने को वो फ़क़त बस ग़ैरो सा ही था
उसका मेरे  दिल में ठिकाना सा  हो गया
रिश्ता कुछ ना था उससे वो मेरा हो गया
 अपनों से भी बढ़ कर वो  अपना हो गया

आराधना राय

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कैसे -कैसे दिन हमने काटे है  अपने रिश्ते खुद हमने छांटे है पाँव में चुभते जाने कितने कांटे है आँखों में अब ख़ाली ख़ाली राते है इस दुनिया में कैसे कैसे नाते है तेरी- मेरी रह गई कितनी बातें है दिल में तूफान छुपाये बैठे है  बिन बोली सी जैसे बरसाते है

ग़ज़ल

लगी थी तोमहते उस पर जमाने में एक मुद्दत लगी उसे घर लौट के आने में हम मशगुल थे घर दिया ज़लाने में लग गई आग सारे जमाने में लगेगी सदिया रूठो को मानने में अजब सी बात है ये दिल के फसाने में उम्र गुजरी है एक एक पैसा कमाने में मिट्टी से खुद घर अपना बनाने में आराधना राय 

राहत

ना काबा ना काशी में सकूं मिला दिल को दिल से राहत थी जब विसाल -ए -सनम मिला। ज़िंदगी का कहर झेल कर मिला बीच बाज़ार में खुद को  नीलम कर गया यू  हर आदमी मिला राह में वो इस तरह कोई चाहतों से ना मिला रूह बेकरार रहे कोई "अरु" और वो अब्र ना कभी हमसे यू मिला आराधना राय copyright :  Rai Aradhana  ©