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निभाया था

अपनों ने जब कोई मुझ से रिश्ता ना निभाया था
तो उसी ने आकर गम कुछ इस तरह बटाया था

मुझे  नहीं उसने मेरे ज़ख्मों को गले लगाया था 
कौन कहता है उस रोज़ वो कुछ भी ना लाया था

वो किस तकलीफ़ में था ये बात कह ना पाया था
दिल कि हज़ार खुशियाँ वो मुझे ही  देने आया था

मेरे मकान के दरों -दीवार कब से यू ही ढह रहे थे
वो मेरा टूटा हुआ घर फिर बनाने ही तो आया था

सरे बाज़ार वो मुझ से कुछ भी तो कह ना सका था
वो मेरे दामन को कीचड़  से ही  बचाने तो आया था
  
आराधना राय

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ग़ज़ल

लगी थी तोमहते उस पर जमाने में एक मुद्दत लगी उसे घर लौट के आने में हम मशगुल थे घर दिया ज़लाने में लग गई आग सारे जमाने में लगेगी सदिया रूठो को मानने में अजब सी बात है ये दिल के फसाने में उम्र गुजरी है एक एक पैसा कमाने में मिट्टी से खुद घर अपना बनाने में आराधना राय 

राहत

ना काबा ना काशी में सकूं मिला दिल को दिल से राहत थी जब विसाल -ए -सनम मिला। ज़िंदगी का कहर झेल कर मिला बीच बाज़ार में खुद को  नीलम कर गया यू  हर आदमी मिला राह में वो इस तरह कोई चाहतों से ना मिला रूह बेकरार रहे कोई "अरु" और वो अब्र ना कभी हमसे यू मिला आराधना राय copyright :  Rai Aradhana  ©
कैसे -कैसे दिन हमने काटे है  अपने रिश्ते खुद हमने छांटे है पाँव में चुभते जाने कितने कांटे है आँखों में अब ख़ाली ख़ाली राते है इस दुनिया में कैसे कैसे नाते है तेरी- मेरी रह गई कितनी बातें है दिल में तूफान छुपाये बैठे है  बिन बोली सी जैसे बरसाते है