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क्या पाओगे

आज हूँ तुम कल मुझे नहीं तुम पाओगे
मेरी आवाज़ भी सुन नहीं तुम यू पाओगे

दिल ही दिल में तुम भी खूब  पछताओगे
मुझ को खोकर बता तुम यहाँ क्या पाओगे

रूठ कर तुम भला क्या मुझ से दूर जाओगे
ज़र्रे -ज़र्रे में मुझको ही तुम  बिखरा पाओगे

उलझनें अपनी ही खुद तुम यू बढ़ा जाओगे
हर जगह वीरान सी मेरे बगैर तुम पाओगे

ना रो सकोगे तुम फिर ना यू मुस्कुरओगे
दिल के टूटने कि आवाज़ ही सुन पाओगे

मेरे ज़ख़्मों को कुरेद कर तुम क्या पाओगे
मैं जो रोइ तो तुम भी तो अश्क़ बहाओगे

नज़्म  .... आराधना राय


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ग़ज़ल

लगी थी तोमहते उस पर जमाने में एक मुद्दत लगी उसे घर लौट के आने में हम मशगुल थे घर दिया ज़लाने में लग गई आग सारे जमाने में लगेगी सदिया रूठो को मानने में अजब सी बात है ये दिल के फसाने में उम्र गुजरी है एक एक पैसा कमाने में मिट्टी से खुद घर अपना बनाने में आराधना राय 

राहत

ना काबा ना काशी में सकूं मिला दिल को दिल से राहत थी जब विसाल -ए -सनम मिला। ज़िंदगी का कहर झेल कर मिला बीच बाज़ार में खुद को  नीलम कर गया यू  हर आदमी मिला राह में वो इस तरह कोई चाहतों से ना मिला रूह बेकरार रहे कोई "अरु" और वो अब्र ना कभी हमसे यू मिला आराधना राय copyright :  Rai Aradhana  ©
कैसे -कैसे दिन हमने काटे है  अपने रिश्ते खुद हमने छांटे है पाँव में चुभते जाने कितने कांटे है आँखों में अब ख़ाली ख़ाली राते है इस दुनिया में कैसे कैसे नाते है तेरी- मेरी रह गई कितनी बातें है दिल में तूफान छुपाये बैठे है  बिन बोली सी जैसे बरसाते है