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मिट्टी में दफ़न आहट

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इमेज़ साभार गुगल
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मिट्टी में दफ़न किसी की आहट थी
देखा तो वो भी  चाहत किसी की थी

मासूम चेहरा कोई रवानी ढूढ़ता था
हवा का ज़हर भी उसी को सूँघता था

तमाशाई खुद कोई तमाशा देखता था
 मौत का सामान जाने क्यू  बेचता था

शहर में  पसरा जाने क्यों ये सन्नाटा था
 निशाने पर आज भी कत्ल होने वाला था

लूट कर चला गया  क्यू मानने वाला था
हसरतों का जनाज़ा उठने ही ये वाला था

देखा सभी ने ये डोली अभी उठी ही तो थी
दुल्हन सी आग में वो बस जली ही तो थी

आराधना राय








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कैसे -कैसे दिन हमने काटे है  अपने रिश्ते खुद हमने छांटे है पाँव में चुभते जाने कितने कांटे है आँखों में अब ख़ाली ख़ाली राते है इस दुनिया में कैसे कैसे नाते है तेरी- मेरी रह गई कितनी बातें है दिल में तूफान छुपाये बैठे है  बिन बोली सी जैसे बरसाते है

ग़ज़ल

लगी थी तोमहते उस पर जमाने में एक मुद्दत लगी उसे घर लौट के आने में हम मशगुल थे घर दिया ज़लाने में लग गई आग सारे जमाने में लगेगी सदिया रूठो को मानने में अजब सी बात है ये दिल के फसाने में उम्र गुजरी है एक एक पैसा कमाने में मिट्टी से खुद घर अपना बनाने में आराधना राय 

राहत

ना काबा ना काशी में सकूं मिला दिल को दिल से राहत थी जब विसाल -ए -सनम मिला। ज़िंदगी का कहर झेल कर मिला बीच बाज़ार में खुद को  नीलम कर गया यू  हर आदमी मिला राह में वो इस तरह कोई चाहतों से ना मिला रूह बेकरार रहे कोई "अरु" और वो अब्र ना कभी हमसे यू मिला आराधना राय copyright :  Rai Aradhana  ©