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नज़्म -------------तेरे ख़त





आभार गुगल इमेज़


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   तेरे ख़त मुझे आज भी  क्यू  देर तक यू रुलाते है  
 यादों कि कैद में थमीं बातों में  जब मुस्कुराते है 

धुँधले हो चुके स्याह शब्द  कुछ कह से जाते है  
 आँसुओ  के धब्बों में छिपे राज़ हरे से हो जाते है 

  वक़्त के मोड़ पर खड़े यू ही जब कहीं ठहर जाते है  
 उनकी बातों के सायों को इंतज़ार  में खड़े पाते  है 

 कागज़  ना दवात कलम लिखने वाले लिख जाते है  
बातों के अहसास अब किसी के समझ नहीं आते है  

किसी के ऑंसू भी कोई दास्तां नहीं सुना कर  जाते है 
दर्द दिल के दिल में ही दफन से हो कर क्यू रह जाते है 


  आराधना राय  

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ग़ज़ल

लगी थी तोमहते उस पर जमाने में एक मुद्दत लगी उसे घर लौट के आने में हम मशगुल थे घर दिया ज़लाने में लग गई आग सारे जमाने में लगेगी सदिया रूठो को मानने में अजब सी बात है ये दिल के फसाने में उम्र गुजरी है एक एक पैसा कमाने में मिट्टी से खुद घर अपना बनाने में आराधना राय 

राहत

ना काबा ना काशी में सकूं मिला दिल को दिल से राहत थी जब विसाल -ए -सनम मिला। ज़िंदगी का कहर झेल कर मिला बीच बाज़ार में खुद को  नीलम कर गया यू  हर आदमी मिला राह में वो इस तरह कोई चाहतों से ना मिला रूह बेकरार रहे कोई "अरु" और वो अब्र ना कभी हमसे यू मिला आराधना राय copyright :  Rai Aradhana  ©
कैसे -कैसे दिन हमने काटे है  अपने रिश्ते खुद हमने छांटे है पाँव में चुभते जाने कितने कांटे है आँखों में अब ख़ाली ख़ाली राते है इस दुनिया में कैसे कैसे नाते है तेरी- मेरी रह गई कितनी बातें है दिल में तूफान छुपाये बैठे है  बिन बोली सी जैसे बरसाते है