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कसक





मन कि कसक मन में ही कही  रहती है
इंसानियत परिंदो के मानिंद  ही रहती है 

 मन हिंडोले कि तरह यही बस कहता है 
तू कही भी रहे मेरे आस -पास  रहता  है 

मन में बेचैनियाँ खुमार बेशुमार रहता है 
मैं तेरी हूँ कि नहीं कोई बार बार कहता है 

एक बार ज़ी उठू तेरे साथ पहले कहता है
बात लम्हों कि है क्यों हर बार कहता  है 

आराधना राय  

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ग़ज़ल

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राहत

ना काबा ना काशी में सकूं मिला दिल को दिल से राहत थी जब विसाल -ए -सनम मिला। ज़िंदगी का कहर झेल कर मिला बीच बाज़ार में खुद को  नीलम कर गया यू  हर आदमी मिला राह में वो इस तरह कोई चाहतों से ना मिला रूह बेकरार रहे कोई "अरु" और वो अब्र ना कभी हमसे यू मिला आराधना राय copyright :  Rai Aradhana  ©