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शिखर



शिखर

उन्नंत भाल तेरा
रखेगा  मान मेरा
तू मुस्कुराएगा
चाँद भी आएगा
तारों में तारा
ध्रुव तारा कहलायेगा
नभ में जलतरंग
सा लहराएगा
पर्वत पर  विजित हो
शिरोमणि हो जायेगा
माँ का सपूत हर कोई
शिखर ही हो जायेगा
चन्द्र ,तारा ,निशा ,
शुभ गणक फल पाएगा
कर्म के फल सब शुभ 
हो जायेंगे ,अमित जीवन
 फल पायेगे 
वंदना , अर्चना आराधना 
 से नित्य 
ही अपने अपने ईश्वर
  हो पायेगे 

स्रृष्टि , से भक्ति बन 
जगत जलचरतू शुभ हो जायेंगे 
राम कि अयोध्या , 
शाम और राधा का प्रेम यही पायेगे 
विश्व जब सद भावना के लिए
 विश्व -बंधुत्व दिवस बन जाएगा 
फिर कोई एक दूसरे से अलग कैसे रह पायेगा 
गायन , वादन , नृत्य से 
कला देवी शारदा जब आएगी 
राम -राज्य बन साकेत 
 सा जीवन यही हो जायेगा
प्रेम कि धारा ,सूर्ये कि शक्ति भी पायेगी 
जब  जीवन तू स्वयं शिव सार्थक हो जायेगा 
तब पार्वती को शिव राधा को कृष्ण पाकर 
गणेशं कि मंगल कामना से
 हर घर जगमगाएगा 
उस दिन ईश्वर तू धरती
 पर उत्तर आएगा
जीवन उन्नत शिखर हो जायेगा। 
पूर्ति स्वयम ईशवर कि वसुंधरा
 में स्त्री- पुरुष से ,सृष्टि 
साज़ से सिंगार  से  हो जाएगी। 
जीवन निरंतर  धीरे धीरे आएगा 
,सुर का सुरेश्वर ,महेश्वरि बन 
जायेगा। 
आराधना राय 



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कैसे -कैसे दिन हमने काटे है  अपने रिश्ते खुद हमने छांटे है पाँव में चुभते जाने कितने कांटे है आँखों में अब ख़ाली ख़ाली राते है इस दुनिया में कैसे कैसे नाते है तेरी- मेरी रह गई कितनी बातें है दिल में तूफान छुपाये बैठे है  बिन बोली सी जैसे बरसाते है

ग़ज़ल

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