Skip to main content

वज़ूद


साभार गुगल इमेज़




तमाम उम्र बग़ैर शज़र के गुज़रीं
ज़िंदगी कैसी भी थी धूप में गुज़री

मुझी से वो वादे हज़ार क्यू करता है
मुझे भूल जाने कि बात भी करता है

जला के घर मेरा वो क्यू अब हँसता है
जाने किस आशियाने कि बात करता है

मेरा वज़ूद है उस से मुझे वो ये कहता है
 मेरे ही यादों के दरिया में बहता रहता है
आराधना राय

Comments

Popular posts from this blog

नज़्म

अब मेरे दिल को तेरे किस्से नहीं भाते  कहते है लौट कर गुज़रे जमाने नहीं आते  इक ठहरा हुआ समंदर है तेरी आँखों में  छलक कर उसमे से आबसर नहीं आते  दिल ने जाने कब का धडकना छोड़ दिया है  रात में तेरे हुस्न के अब सपने नहीं आते  कुछ नामो के बीच कट गई मेरी दुनियाँ  अपना हक़ भी अब हम लेने नहीं जाते  आराधना राय 

नज़्म

 उम्र के पहले अहसास सा कुछ लगता है वो जो हंस दे तो रात को  दिन लगता है उसकी बातों का नशा आज वही लगता है चिलमनों की कैद में वो  जुदा  सा लगता है उसकी मुट्टी में सुबह बंद है शबनम की तरह फिर भी बेजार जमाना उसे लगता है आराधना

अच्छा था

ज़िन्दगी तेरे बिना जी लेते तो अच्छा था दामन आंसुओं में भिगो लेते तो अच्छा था सुना कर हाल दिल का रात भर रोये तुम से राब्ता न होता दिल का तो अच्छा था दिल धड़कता रहा मगर जुबा चुप थी मेरे इकरार को इंकार समझ लेते तो अच्छा था ख़ुशी की महफिले कम पड़ी गम भुलाने में हमें तुम याद न आते अरु तो अच्छा था