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कोई





जाने क्या ये सोच कर वो है बस मेरी मंज़िल  
तकदीर बनकर नज़र आता है वो फ़िर  कोई

थोड़े गम और सुख उस में रोज़ यू ही देकर   
चाहने वाला चला आता है हर बार जाने कोई 

हम तो मरते रहे है तन्हा इसी ख़ामोशी से
ज़िंदा हूँ याद दिलाता है जाने हर बार कोई

दिया जलता है रात भर खामोशियों में कोई
आंधियों ने कसर ना छोड़ी इस  बार कोई
कॉपी राइट @आराधना राय

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कैसे -कैसे दिन हमने काटे है  अपने रिश्ते खुद हमने छांटे है पाँव में चुभते जाने कितने कांटे है आँखों में अब ख़ाली ख़ाली राते है इस दुनिया में कैसे कैसे नाते है तेरी- मेरी रह गई कितनी बातें है दिल में तूफान छुपाये बैठे है  बिन बोली सी जैसे बरसाते है

ग़ज़ल

लगी थी तोमहते उस पर जमाने में एक मुद्दत लगी उसे घर लौट के आने में हम मशगुल थे घर दिया ज़लाने में लग गई आग सारे जमाने में लगेगी सदिया रूठो को मानने में अजब सी बात है ये दिल के फसाने में उम्र गुजरी है एक एक पैसा कमाने में मिट्टी से खुद घर अपना बनाने में आराधना राय 

राहत

ना काबा ना काशी में सकूं मिला दिल को दिल से राहत थी जब विसाल -ए -सनम मिला। ज़िंदगी का कहर झेल कर मिला बीच बाज़ार में खुद को  नीलम कर गया यू  हर आदमी मिला राह में वो इस तरह कोई चाहतों से ना मिला रूह बेकरार रहे कोई "अरु" और वो अब्र ना कभी हमसे यू मिला आराधना राय copyright :  Rai Aradhana  ©