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ज़िंदगी



साभार गुगल इमेज़

समुंदर भी कश्तियाँ को तोड़ देते है
तूफानों में जिन्हे साहिल छोड़ देते है

ख़ुशी कि उम्मीद पर ग़म ले लेते है
हाल दिल का सब से बयां कर देते है

अपना नाता दुनियाँ से जोड़ लेते है
गुनाह अपने ही  सर हम ओढ़ लेते है

खिज़ा में पत्ते भी साथ छोड़ देते है
ग़िला क्या उनसे जो हाथ छोड़ देते है

ज़िंदगी इसी बहाने से तुझे देख लेते है
आँसुओ में भी खुशियाँ ढूंढ ही ज़ी लेते है


आराधना राय

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नज़्म

अब मेरे दिल को तेरे किस्से नहीं भाते  कहते है लौट कर गुज़रे जमाने नहीं आते  इक ठहरा हुआ समंदर है तेरी आँखों में  छलक कर उसमे से आबसर नहीं आते  दिल ने जाने कब का धडकना छोड़ दिया है  रात में तेरे हुस्न के अब सपने नहीं आते  कुछ नामो के बीच कट गई मेरी दुनियाँ  अपना हक़ भी अब हम लेने नहीं जाते  आराधना राय 

नज़्म

 उम्र के पहले अहसास सा कुछ लगता है वो जो हंस दे तो रात को  दिन लगता है उसकी बातों का नशा आज वही लगता है चिलमनों की कैद में वो  जुदा  सा लगता है उसकी मुट्टी में सुबह बंद है शबनम की तरह फिर भी बेजार जमाना उसे लगता है आराधना

अच्छा था

ज़िन्दगी तेरे बिना जी लेते तो अच्छा था दामन आंसुओं में भिगो लेते तो अच्छा था सुना कर हाल दिल का रात भर रोये तुम से राब्ता न होता दिल का तो अच्छा था दिल धड़कता रहा मगर जुबा चुप थी मेरे इकरार को इंकार समझ लेते तो अच्छा था ख़ुशी की महफिले कम पड़ी गम भुलाने में हमें तुम याद न आते अरु तो अच्छा था