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प्रेम



साभार गुगल इमेज़

बनता  नहीं प्रेम कॉपी किताबों कि तरह
कोई  रहता मौन मन में सितारे कि तरह  

जहां खिली में बन के हरसिंगार कि तरह 
वही सर्वस्व लुटाया था धरा कि ही तरह 

क्यों बुझते है अनबुझ सी  पहेली कि तरह 
जब मैं ना थी किसी कि भी सहेली कि तरह 

मान का कहां जब बिके समान कि ही तरह
कहे कैसे जब रहे हम बन के सज़ा कि तरह

आराधना राय 

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कैसे -कैसे दिन हमने काटे है  अपने रिश्ते खुद हमने छांटे है पाँव में चुभते जाने कितने कांटे है आँखों में अब ख़ाली ख़ाली राते है इस दुनिया में कैसे कैसे नाते है तेरी- मेरी रह गई कितनी बातें है दिल में तूफान छुपाये बैठे है  बिन बोली सी जैसे बरसाते है

ग़ज़ल

लगी थी तोमहते उस पर जमाने में एक मुद्दत लगी उसे घर लौट के आने में हम मशगुल थे घर दिया ज़लाने में लग गई आग सारे जमाने में लगेगी सदिया रूठो को मानने में अजब सी बात है ये दिल के फसाने में उम्र गुजरी है एक एक पैसा कमाने में मिट्टी से खुद घर अपना बनाने में आराधना राय 

राहत

ना काबा ना काशी में सकूं मिला दिल को दिल से राहत थी जब विसाल -ए -सनम मिला। ज़िंदगी का कहर झेल कर मिला बीच बाज़ार में खुद को  नीलम कर गया यू  हर आदमी मिला राह में वो इस तरह कोई चाहतों से ना मिला रूह बेकरार रहे कोई "अरु" और वो अब्र ना कभी हमसे यू मिला आराधना राय copyright :  Rai Aradhana  ©