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उदासी नज़्म




तमाम ख्वाहिशें पल में खाक हुई
बात ही बात में क्या खता हुई

किसी दरख्त का साया पासबां नहीं
धुप रास्तों कि जब नसीब हुई

पाँव  नहीं दिल पे छाले पाए है
 गम मिरे नाम इतने आए है

बू - ए आवारा पूछती रही गम का सबब
भटकती रही थी यू  भी तेरे बगैर कहीं

शाम के बाद  तेरे  निशां होंगे कहाँ
वक़्त से गुज़रें तो अब हम होगे कहाँ

जश्न रुसवाइयों का मानते भी क्यों
सामने खुदा रहा अरु उसे भुलाते भी क्यों

आराधना राय अरु

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कैसे -कैसे दिन हमने काटे है  अपने रिश्ते खुद हमने छांटे है पाँव में चुभते जाने कितने कांटे है आँखों में अब ख़ाली ख़ाली राते है इस दुनिया में कैसे कैसे नाते है तेरी- मेरी रह गई कितनी बातें है दिल में तूफान छुपाये बैठे है  बिन बोली सी जैसे बरसाते है

ग़ज़ल

लगी थी तोमहते उस पर जमाने में एक मुद्दत लगी उसे घर लौट के आने में हम मशगुल थे घर दिया ज़लाने में लग गई आग सारे जमाने में लगेगी सदिया रूठो को मानने में अजब सी बात है ये दिल के फसाने में उम्र गुजरी है एक एक पैसा कमाने में मिट्टी से खुद घर अपना बनाने में आराधना राय 

राहत

ना काबा ना काशी में सकूं मिला दिल को दिल से राहत थी जब विसाल -ए -सनम मिला। ज़िंदगी का कहर झेल कर मिला बीच बाज़ार में खुद को  नीलम कर गया यू  हर आदमी मिला राह में वो इस तरह कोई चाहतों से ना मिला रूह बेकरार रहे कोई "अरु" और वो अब्र ना कभी हमसे यू मिला आराधना राय copyright :  Rai Aradhana  ©