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ना जाने क्या सोच कर




राह में कोई था ही नहीं अपना क्या  ये सोच कर 
लोग हँसते रहे मेरी बर्बादी का काफिला देख कर 
हर एक लम्हा गुज़र ही जायेगा जाने क्या सोच कर 
ज़ख्म है भर जायेगे देने वाले ने दिए क्या देख कर 

उसे अपना ही अहसास नहीं क्यों तुझे कुछ भी देगा 
 उसको हम दगा दे आये कब के जाने क्या सोच कर

 वफ़ा पे इल्ज़ाम धरते रहे वो ना जाने क्या सोच कर 
 हम भी सितम सहते रहे क्यों ना जाने क्या सोच कर 

आराधना 
















































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कैसे -कैसे दिन हमने काटे है  अपने रिश्ते खुद हमने छांटे है पाँव में चुभते जाने कितने कांटे है आँखों में अब ख़ाली ख़ाली राते है इस दुनिया में कैसे कैसे नाते है तेरी- मेरी रह गई कितनी बातें है दिल में तूफान छुपाये बैठे है  बिन बोली सी जैसे बरसाते है

ग़ज़ल

लगी थी तोमहते उस पर जमाने में एक मुद्दत लगी उसे घर लौट के आने में हम मशगुल थे घर दिया ज़लाने में लग गई आग सारे जमाने में लगेगी सदिया रूठो को मानने में अजब सी बात है ये दिल के फसाने में उम्र गुजरी है एक एक पैसा कमाने में मिट्टी से खुद घर अपना बनाने में आराधना राय 

राहत

ना काबा ना काशी में सकूं मिला दिल को दिल से राहत थी जब विसाल -ए -सनम मिला। ज़िंदगी का कहर झेल कर मिला बीच बाज़ार में खुद को  नीलम कर गया यू  हर आदमी मिला राह में वो इस तरह कोई चाहतों से ना मिला रूह बेकरार रहे कोई "अरु" और वो अब्र ना कभी हमसे यू मिला आराधना राय copyright :  Rai Aradhana  ©