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सपनें







रंग हीन गंध हीन जीवन में
सब सपनें निस्सार हो गए।

 क्यू चल -अचल जगत  प्रीत
 के आँसू अब  व्यापार हो गए।

नभ के पंक्षी जल -चर भी जैसे 
नीरस और बेकार हो गये कैसे।

ईश्वेर भी स्वर हीन  हो गए जैसे
जग के कारोबार हो गए  हो  ऐसे।

आराधना 

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ग़ज़ल

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राहत

ना काबा ना काशी में सकूं मिला दिल को दिल से राहत थी जब विसाल -ए -सनम मिला। ज़िंदगी का कहर झेल कर मिला बीच बाज़ार में खुद को  नीलम कर गया यू  हर आदमी मिला राह में वो इस तरह कोई चाहतों से ना मिला रूह बेकरार रहे कोई "अरु" और वो अब्र ना कभी हमसे यू मिला आराधना राय copyright :  Rai Aradhana  ©
कैसे -कैसे दिन हमने काटे है  अपने रिश्ते खुद हमने छांटे है पाँव में चुभते जाने कितने कांटे है आँखों में अब ख़ाली ख़ाली राते है इस दुनिया में कैसे कैसे नाते है तेरी- मेरी रह गई कितनी बातें है दिल में तूफान छुपाये बैठे है  बिन बोली सी जैसे बरसाते है