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कठोर धरातल

साभार गुगल इमेज 

छूटे अब  सभी खिलौने 
रूठा बचपन का संसार 
हाथ क्या आया उनके 
ये कागज़ का व्यापार 

भीख मांगते उन  हाथों को 
मिला जब अभाग्य अपार 
नही किताबें संगी जिनकी  
क्या उन्हें ना भाया प्यार 

रही सदा फीकी ममता ही 
ना मा और पिता का साथ
लड़ा लड़कपन सड़कों सड़कों 
लेकर भटके हाथ कटोर- दान 

कठोर धरातल , मैला आँचल 
क्या निभा पाया उन से संसार 

दोष क्या देना उनका फिर भी 
थे विधि के ये  सब क्रूर विधान 

कभी -कही तो सब कुछ पाकर 
 जग में और करें बस  हाहाकार 
आराधना 





















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ग़ज़ल

लगी थी तोमहते उस पर जमाने में एक मुद्दत लगी उसे घर लौट के आने में हम मशगुल थे घर दिया ज़लाने में लग गई आग सारे जमाने में लगेगी सदिया रूठो को मानने में अजब सी बात है ये दिल के फसाने में उम्र गुजरी है एक एक पैसा कमाने में मिट्टी से खुद घर अपना बनाने में आराधना राय 

राहत

ना काबा ना काशी में सकूं मिला दिल को दिल से राहत थी जब विसाल -ए -सनम मिला। ज़िंदगी का कहर झेल कर मिला बीच बाज़ार में खुद को  नीलम कर गया यू  हर आदमी मिला राह में वो इस तरह कोई चाहतों से ना मिला रूह बेकरार रहे कोई "अरु" और वो अब्र ना कभी हमसे यू मिला आराधना राय copyright :  Rai Aradhana  ©
कैसे -कैसे दिन हमने काटे है  अपने रिश्ते खुद हमने छांटे है पाँव में चुभते जाने कितने कांटे है आँखों में अब ख़ाली ख़ाली राते है इस दुनिया में कैसे कैसे नाते है तेरी- मेरी रह गई कितनी बातें है दिल में तूफान छुपाये बैठे है  बिन बोली सी जैसे बरसाते है