दूर कहीं किसी गाँव में
डूबते हुए सूरज के साथ
साँझ रुक सी जाती है
पेड़ों से झाँकते पत्तों में
कुछ वह कह सी जाती है
अंधेरों में मिलने से पहले
अपने में सिमट जाती है
खामोशी के साथ आँखों से
सब कुछ कह कर जाती है
पंछियो के कलरव पुकार से
नए रंग रूप भर कर जाती है
सपनों को आवाज़ दे जाती है
सूरज के साथ विदा हो जाती है
आराधना
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