साभार गुगल इमेज
हरे पेड़ पत्ते
सुगन्धित वो कलियाँ
बरसाते थे सावन
रिमझिम से बादल
अब धूमिल हुई क्यों
तड़पती है धरती
बची आस बाकी
सूनी वसुधा कि
न बसेगा पानी
न बसेगा पानी
ऋण कैसे चुकेगा
वीर किसानों का
ना बरसा गर नीर
जब ना पहनेंगी
वसुंधरा चूनर धानी
अब धूमिल परिवेश
क्लांत दुखी देश
क्लांत दुखी देश
आराधना
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