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मन




 बीती बाते मन ही मन शोर मचाएगी
साँझ  बिरहन जब गुमसुम आ जाएगी
मन का खाली  कोना खाली न रह पायेगा
नयनों के कोरो से छ्लक- छ्लक आ  जाएगा।

होली के रंग भी मन को ना रंग ये जब पायेगे
लाल ,गुलाबी, नीले,पीले,बादल बहुत रुलायेंगे
दोनों बाहें ,फैला कर ,घर आँगन तुझे बुलायेंगे
दूर देश में रहने वाले ,लौट के घर जब ना जायेगे।

सतरंगे सपनों कि माला हरपल तुझे  लुभायगी
हरी चूड़ियों के हिलने पर याद तुम्हारी आएगी
कोई घर में नीर बहा कर रात को ना  सो पायेगा
सन्नाटे ही सन्नाटे में मन कुछ भूल ना पायेगा


मन की बातें मन ही जाने ,कोई भी समझ न पायेगा
गया समय जब हाथ दिखा कर दूर कहीं छुप जायेगा।
copyright : Rai Aradhana ©
आराधना
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ग़ज़ल

लगी थी तोमहते उस पर जमाने में एक मुद्दत लगी उसे घर लौट के आने में हम मशगुल थे घर दिया ज़लाने में लग गई आग सारे जमाने में लगेगी सदिया रूठो को मानने में अजब सी बात है ये दिल के फसाने में उम्र गुजरी है एक एक पैसा कमाने में मिट्टी से खुद घर अपना बनाने में आराधना राय 

राहत

ना काबा ना काशी में सकूं मिला दिल को दिल से राहत थी जब विसाल -ए -सनम मिला। ज़िंदगी का कहर झेल कर मिला बीच बाज़ार में खुद को  नीलम कर गया यू  हर आदमी मिला राह में वो इस तरह कोई चाहतों से ना मिला रूह बेकरार रहे कोई "अरु" और वो अब्र ना कभी हमसे यू मिला आराधना राय copyright :  Rai Aradhana  ©
कैसे -कैसे दिन हमने काटे है  अपने रिश्ते खुद हमने छांटे है पाँव में चुभते जाने कितने कांटे है आँखों में अब ख़ाली ख़ाली राते है इस दुनिया में कैसे कैसे नाते है तेरी- मेरी रह गई कितनी बातें है दिल में तूफान छुपाये बैठे है  बिन बोली सी जैसे बरसाते है