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मित्र के नाम पाती



चला काफिला ये अकेले -अकेले
लो अंतिम विदाई  ये अंतिम समय कि
परिणय का सूत्र ही प्रेम होता,नहीं सदा
बात ,प्रणय कि ही होती नहीं है यहाँ
कहते है के मित्र मिलते नहीं
ह्रदय ने सुनी कहीं दूर से आवाज़     
कैसी थी रात,उस अंधकार में
 दुःख कि बातें बनी मित्र का साथ
थी एक कि ,दूसरे कि वहीं मन कि बात
थी जब दुख ने  दुख को आवाज़ दी
आँसुओ को  भी पोंछा, और बात कि               
साथ निरंतर तुम्ही ने बस दिया साथ
दुख कि बात बनी सुख का आधार   
 ना था  कोई  बंधु कोई भी  बात
साथी यहाँ ये कारवां अब  रुकेगा नहीं
चलेगा सदा और  साथ रहेगा  सदा
बात उसकी थी जिसने निभाई सदा
  @  आराधना  कॉपी राइट
मित्र के नाम पाती








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ग़ज़ल

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कैसे -कैसे दिन हमने काटे है  अपने रिश्ते खुद हमने छांटे है पाँव में चुभते जाने कितने कांटे है आँखों में अब ख़ाली ख़ाली राते है इस दुनिया में कैसे कैसे नाते है तेरी- मेरी रह गई कितनी बातें है दिल में तूफान छुपाये बैठे है  बिन बोली सी जैसे बरसाते है