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! कौशल !: संस्कृति रक्षण में महिला सहभागिता

! कौशल !: संस्कृति रक्षण में महिला सहभागिता
हुजूम सड़कों पे क्यू आज तारी 
वक़्त -बे वक़्त भीड़ हैक्यू  ज़ारी

हाथ में मोमबत्ती लिए ये  साथ
संवेदनाओं से उलझते हूए  हाथ

राह में गर दिया होता कभी साथ
यू न जलते ,उलझते ये सब साथ

चीख , चीत्कार को जब सुन पाये
 वक़्त पर साथ क्यू  ना तूम आये

क्यों छिड़ी है जंग सड़कों पर आज
क्यों किसी बात को ना समझ पाए

नुचती रहेगी ,जलती बिखरती रहेंगी
जब कहीं कभी भी कोई देगा ना साथ

भीड़ कि आवाज़ भी ये उठती रहेंगी
जब तक ना होगी कभी न्याय से बात
आराधना
http://aradhanakissekahaniyan.blogspot.in/

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कैसे -कैसे दिन हमने काटे है  अपने रिश्ते खुद हमने छांटे है पाँव में चुभते जाने कितने कांटे है आँखों में अब ख़ाली ख़ाली राते है इस दुनिया में कैसे कैसे नाते है तेरी- मेरी रह गई कितनी बातें है दिल में तूफान छुपाये बैठे है  बिन बोली सी जैसे बरसाते है

ग़ज़ल

लगी थी तोमहते उस पर जमाने में एक मुद्दत लगी उसे घर लौट के आने में हम मशगुल थे घर दिया ज़लाने में लग गई आग सारे जमाने में लगेगी सदिया रूठो को मानने में अजब सी बात है ये दिल के फसाने में उम्र गुजरी है एक एक पैसा कमाने में मिट्टी से खुद घर अपना बनाने में आराधना राय 

राहत

ना काबा ना काशी में सकूं मिला दिल को दिल से राहत थी जब विसाल -ए -सनम मिला। ज़िंदगी का कहर झेल कर मिला बीच बाज़ार में खुद को  नीलम कर गया यू  हर आदमी मिला राह में वो इस तरह कोई चाहतों से ना मिला रूह बेकरार रहे कोई "अरु" और वो अब्र ना कभी हमसे यू मिला आराधना राय copyright :  Rai Aradhana  ©