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शम्मा


शम्मा




शोर तारी है , ज़ब्रे पे ये सोज़ -ए  सब्र क्यों है
हम तो घिरे या लड़े अब यहाँ के  तूफानों से

अभी तक होश है, जैसे भी है हम दीवानो में
क़फ़स मैं हो के रहे या उडे हम आसमानों में

शम्मा  जो जल रही कहीं यहाँ पे वीरानो में
नूर ले आई कही से तू भी  इन आसमानों से

हम तो मौत को भी जी जाते है फिर "अना"
क्यों रुके हम यू ही कही बहते आबसारो  पे
आराधना







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ग़ज़ल

लगी थी तोमहते उस पर जमाने में एक मुद्दत लगी उसे घर लौट के आने में हम मशगुल थे घर दिया ज़लाने में लग गई आग सारे जमाने में लगेगी सदिया रूठो को मानने में अजब सी बात है ये दिल के फसाने में उम्र गुजरी है एक एक पैसा कमाने में मिट्टी से खुद घर अपना बनाने में आराधना राय 

राहत

ना काबा ना काशी में सकूं मिला दिल को दिल से राहत थी जब विसाल -ए -सनम मिला। ज़िंदगी का कहर झेल कर मिला बीच बाज़ार में खुद को  नीलम कर गया यू  हर आदमी मिला राह में वो इस तरह कोई चाहतों से ना मिला रूह बेकरार रहे कोई "अरु" और वो अब्र ना कभी हमसे यू मिला आराधना राय copyright :  Rai Aradhana  ©
कैसे -कैसे दिन हमने काटे है  अपने रिश्ते खुद हमने छांटे है पाँव में चुभते जाने कितने कांटे है आँखों में अब ख़ाली ख़ाली राते है इस दुनिया में कैसे कैसे नाते है तेरी- मेरी रह गई कितनी बातें है दिल में तूफान छुपाये बैठे है  बिन बोली सी जैसे बरसाते है