Skip to main content

ना कुछ सत्य है ,ना शिव और ना कुछ सुन्दर है





ना कुछ सत्य है ,ना शिव और ना कुछ सुन्दर है
जीवन-तू क्या है बस दुःख का अथाह समुन्दर है

आती-जाती श्वासों की इन लहरों में कोलाहल सा
बसा हुआ निश्वासों का उत्ताप मचाता जीवन सा

अधरों पर बन कर एक पहचान अमित चिन्ह   सा
या अंत समय आये कोई अनचीन्हे एक अतिथि सा

गरिमा सुख की कब कहो सलिल सरित सा बहती थी
विश्वास के चन्द्र जब  लहरों में ज़्वार -भाटा  लाते थे   


हर पल तेरे इन नयनो ने तूफान छिपा सा रहता है
हर पल मेरी ही बातें वेग कुछ   समय का छलती है

जीवन तू छीन-भिन  है उच्छल सा मेरे  सपनों सा
तू  जीवन क्षुधा -तृषित मरीचिका मृग तृष्णा सा
आराधना  copyright : Rai Aradhana ©

एक शब्द आपने दिया था पापा एक शंब्द मैंने लगा कर आपकी कविता पूरी की पर आप के जाने के बाद 

Comments

Popular posts from this blog

आज़ाद नज़्म पेड़ कब मेरा साया बन सके धुप के धर मुझे  विरासत  में मिले आफताब पाने की चाहत में नजाने  कितने ज़ख्म मिले एक तू गर नहीं  होता फर्क किस्मत में भला क्या होता मेरे हिस्से में आँसू थे लिखे तेरे हिस्से में मेहताब मिले एक लिबास डाल के बरसो चले एक दर्द ओढ़ ना जाने कैसे जिए ना दिल होता तो दर्द भी ना होता एक कज़ा लेके हम चलते चले ----- आराधना  राय कज़ा ---- सज़ा -- आफताब -- सूरज ---मेहताब --- चाँद

गीत---- नज़्म

आपकी बातों में जीने का सहारा है राब्ता बातों का हुआ अब दुबारा है अश्क ढले नगमों में किसे गवारा है चाँद तिरे मिलने से रूप को संवारा है आईना बता खुद से कौन सा इशारा है मस्त बहे झोकों में हसीन सा नजारा है अश्कबार आँखों में कौंध रहा शरारा है सिमटी हुई रातों में किसने अब पुकारा है आराधना राय "अरु"

गीत हूँ।

न मैं मनमीत न जग की रीत ना तेरी प्रीत बता फिर कौन हूँ घटा घनघोर मचाये शोर  मन का मोर नाचे सब ओर बता फिर कौन हूँ मैं धरणी धीर भूमि का गीत अम्बर की मीत अदिति का मान  हूँ आराधना