समय के मोड पर ,पैर थकने से लगे
सांसो की नर्मियाँ यू ही मिटने सी लगे
जब सासो की डोर भी थमने सी लगे।
वेदना से अपनी स्वयं ही कही मरने लगू
टूटने लगे विश्वास , आस्था मरने लगे
क्षुब्ध हो , मन जब व्यथित होने लगे
आत्मा ,जब अपने पर ही हसने लगे
हर पल मेरा जब कुरुक्षेत्र सा लगने लगे
भोर बन ,फिर मेरे आँगन में आ जाना
पीड़ इस ह्रदय कि भी तू सुन जाना
एक नई पहचान देने ,फिर से आ जाना
कृष्णा बन , उपदेश मुझे चाहे ना देना
व्यथाओं का आँसुओ का वरदान देना
हूँ मनुज ,इस का मुझे विश्वास दे देना
एक नया जीवन एक नई पहचान देना
मेरे गीत मेरे बोल , को आवाज़ दे देना तुम
मेरी अंतर आत्मा बन मुझे आवाज़ देना तुम
आराधना।
copyright : Rai Aradhana ©अपने आप को आवाज़ देती एक कविता
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