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मौन


     
गीतों  के  बोलो  से , निकली  हो जैसे वीणा  की झंकार ,
अश्रु  की धारा से   व्यथित ह्रदय से निकली हो  कोई बात
दुःख ने पहचानी ,  दुःख के  मौन क्रंदन की भी आवाज़
ठहर गया समय , या बीतते पलो ने कह दी अपनी बात
कहानी सी , ढली अश्रुओं से  भीगा ,निकला एक काव्य
स्पंदन रहित  हो हृदय ,करता रहा पुकार बस  बारम्बार
पाती थी दुःख की या छिड़ा था जैसे कोई विहंगम राग
शेष , रह गया ,लालिमा से उष्मित , रंजित आकाश ,
तूलिका उर्फ़ आराधना
copyright rai aradhana rai ©




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कैसे -कैसे दिन हमने काटे है  अपने रिश्ते खुद हमने छांटे है पाँव में चुभते जाने कितने कांटे है आँखों में अब ख़ाली ख़ाली राते है इस दुनिया में कैसे कैसे नाते है तेरी- मेरी रह गई कितनी बातें है दिल में तूफान छुपाये बैठे है  बिन बोली सी जैसे बरसाते है

ग़ज़ल

लगी थी तोमहते उस पर जमाने में एक मुद्दत लगी उसे घर लौट के आने में हम मशगुल थे घर दिया ज़लाने में लग गई आग सारे जमाने में लगेगी सदिया रूठो को मानने में अजब सी बात है ये दिल के फसाने में उम्र गुजरी है एक एक पैसा कमाने में मिट्टी से खुद घर अपना बनाने में आराधना राय 

राहत

ना काबा ना काशी में सकूं मिला दिल को दिल से राहत थी जब विसाल -ए -सनम मिला। ज़िंदगी का कहर झेल कर मिला बीच बाज़ार में खुद को  नीलम कर गया यू  हर आदमी मिला राह में वो इस तरह कोई चाहतों से ना मिला रूह बेकरार रहे कोई "अरु" और वो अब्र ना कभी हमसे यू मिला आराधना राय copyright :  Rai Aradhana  ©