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सच जब मौन हो बोलता है




सच  जब  मौन  हो  बोलता है
दीवारें ,आईने सब तोड़ता  है

भूख कैसी भी हो मन को लगे
आतंक का तांडव मुँह खोलता है

बढ़ने लग जाता  धन का प्रभाव
करने लग जाते लोग दुर्व्यवहार

विप्लब  तब  ही  होते   है साकार
जब मिल जाता उन्हें कोई आधार 

सच को हर तराज़ू में ना यू तोलो
नीलम कर यू बोलिया ना बोलो

बिक गया होता गर सच भी कहीं
 परिवर्तन होता भी तो कैसे होता   

सच जब किसी के अंदर बोलता है
किसी कि ज़िन्दगी को जोड़ता  है।

आराधना















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कैसे -कैसे दिन हमने काटे है  अपने रिश्ते खुद हमने छांटे है पाँव में चुभते जाने कितने कांटे है आँखों में अब ख़ाली ख़ाली राते है इस दुनिया में कैसे कैसे नाते है तेरी- मेरी रह गई कितनी बातें है दिल में तूफान छुपाये बैठे है  बिन बोली सी जैसे बरसाते है

ग़ज़ल

लगी थी तोमहते उस पर जमाने में एक मुद्दत लगी उसे घर लौट के आने में हम मशगुल थे घर दिया ज़लाने में लग गई आग सारे जमाने में लगेगी सदिया रूठो को मानने में अजब सी बात है ये दिल के फसाने में उम्र गुजरी है एक एक पैसा कमाने में मिट्टी से खुद घर अपना बनाने में आराधना राय 

राहत

ना काबा ना काशी में सकूं मिला दिल को दिल से राहत थी जब विसाल -ए -सनम मिला। ज़िंदगी का कहर झेल कर मिला बीच बाज़ार में खुद को  नीलम कर गया यू  हर आदमी मिला राह में वो इस तरह कोई चाहतों से ना मिला रूह बेकरार रहे कोई "अरु" और वो अब्र ना कभी हमसे यू मिला आराधना राय copyright :  Rai Aradhana  ©