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एहसास


दिल के एहसास को ज़िया जाता है
मुस्कुरा के हर दर्द पिया जाता है
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 इश्क़ में बदनाम हुआ जाता है
 रिश्ता  दिल से निभाया जाता है
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चोट लगने पे रोकर सो जाता है
मासूम दिल जब सताया जाता है
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 दामन में सिमट कर  बता जाता है
मेरा अक्स मुझ से  छिपाया जाता है
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दिल के दर्द का पता बता  जाता है
चाँद कि चाँदनी में समाया जाता है
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 कान्धों पे सर रख अश्क बहा जाता है
 ज़िन्दगी तुझ से क्या बताया जाता है
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 बात कर ख़ुद हालात पर रो जाता है
  इल्ज़ाम  "अरु " पर लगाया जाता है
आराधना राय "अरु"














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राहत

ना काबा ना काशी में सकूं मिला दिल को दिल से राहत थी जब विसाल -ए -सनम मिला। ज़िंदगी का कहर झेल कर मिला बीच बाज़ार में खुद को  नीलम कर गया यू  हर आदमी मिला राह में वो इस तरह कोई चाहतों से ना मिला रूह बेकरार रहे कोई "अरु" और वो अब्र ना कभी हमसे यू मिला आराधना राय copyright :  Rai Aradhana  ©

ग़ज़ल

लगी थी तोमहते उस पर जमाने में एक मुद्दत लगी उसे घर लौट के आने में हम मशगुल थे घर दिया ज़लाने में लग गई आग सारे जमाने में लगेगी सदिया रूठो को मानने में अजब सी बात है ये दिल के फसाने में उम्र गुजरी है एक एक पैसा कमाने में मिट्टी से खुद घर अपना बनाने में आराधना राय 

नज़्म

 उम्र के पहले अहसास सा कुछ लगता है वो जो हंस दे तो रात को  दिन लगता है उसकी बातों का नशा आज वही लगता है चिलमनों की कैद में वो  जुदा  सा लगता है उसकी मुट्टी में सुबह बंद है शबनम की तरह फिर भी बेजार जमाना उसे लगता है आराधना