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चले जो बच के साहिलों से उसमें भी तो कुछ है
लहरों से बच कर कश्ती चली उसमे भी कुछ है
आषाढ़ कि बारिश यू ही लगे सावन कि झंकार है
उसकी बात नहीं कोई यू ही बेबात उसमें कुछ है
मंज़िले अपना जब रास्ता खुद ही कहीं यू ढूँढती है
दिल तो रोया आँख में आसूँ ना आए उसमें कुछ है
बादल तो बरसे खूब पर तुम नहीं क्यू नही तुम आए
उस में जो बात है "अरु"उसमें भी राज़ भी तो कुछ है
आराधना राय
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