एक शज़र ही काफ़ी है साया देने को
एक चिंगारी बहुत है आग लगाने को
फिर जाने क्यों गुलिस्तां जल जाते है
कितने ही काफ़िले मरघट तक जाते है
वो कौन है जो बस खुदा पा ही जाते है
चन्द लम्हें ज़िन्दगी के जी ही जाते है
हमें ज़िंदगी लगती है सदी मनाने को
आराधना राय
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