बचपन
कभी बेवज़ह , रूठना और मनना,
बिना बात के वो पहरो खिलखिलाना
कही देर तक गुम हो, गुप चुप यू खेलना
दोपहर गर्मियों की इस तरह से बिताना
वो हाथो से तितली, पकड़ने की बाते
और बातो ही बातो में दिन का गुज़रनावो पीठु का गिरना , वो गिली का ढूढ़ना
वो कंचो का पीटना , स्तापु का टूट जाना
हर एक बात में चीख चिल्लाहट करना
वो खुश हो कर , जीत का जश्न मानना
वो झूले पे झूलने की हसीं , जवां बाते
वो आसमा को पींगे बढ़ाके छु लेना
वो बचपन के दिन थे और ख्वाबो की राते
जैसे हो शबनम के मोती बिखेरने की बाते
अना * \आराधना
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